मैं चाहता था कि सोशल इकोनॉमिक ट्रांसफार्मेशन का हिस्सा बनूं: आमोद कंठ

शिक्षा, प्रशासन और पुलिस से लेकर समाज सेवा में उल्लेखनीय योगदान देने वाले श्री आमोद कंठ का हमेशा से यह सपना रहा कि वह समाजिक परिवर्तन का हिस्सा बनें। उन्होंने पुलिस, प्रशासन और शिक्षा के क्षेत्र को गहराई से देखा है। फर्स्ट न्यूज लाइव की पूनम तुषामड़ के साथ साक्षात्कार में श्री आमोद कंठ ने अपने अनुभवों का खुलासा किया है। उनका कहना है कि न केवल पुलिसकर्मियों की बल्कि दूसरे सरकारी मुलाजिमों की आर्थिक स्थितियां इतनी खराब होती है जिसका दुष्प्रभाव उनकी नौकरी, उनके व्यवहार और उनके परिवार पर भी पड़ता है जिसके कारण उनमं गुस्सा, झूठ और बेईमानी के अवगुण विकसित हो जाते हैं। यहां पेश है उनके साथ बातचीत के मुख्य अंश।


आप शिक्षा के क्षेत्र को छोड़कर प्रशासनिक सेवा में कब और कैसे आए?

क्योंकि मैंने इत्तिफाक से सिविल सर्विस की परीक्षा दे दी और उसमे मेरा चयन हो गया। उसके उपरांत कुछ समय तक मैं मजिस्ट्रेट रहा। बाद मैं आई. पी. एस. में आ गया। आई. पी. एस में आने से पूर्व तक मेरे विचार बहुत अलग थे। उसका कारण यह था कि जब मैं 1970 के बाद आदिवासी क्षेत्रों में कार्य करता था, तब चरम वामपंथी आंदोलन बहुत जोर-शोर से चल रहा था। उस आंदोलन में मेरे कई मित्र भी शामिल थे और मेरे साथ काम भी करते थे। मैं हिंसा जैसे कामों से दूर था, किंतु मेरे विचार उनसे बहुत प्रभावित थे। इसलिए मेरे मन में कहीं भी सरकारी नौकरी खासकर पुलिस की नौकरी पाने की इच्छा नहीं थी। पुलिस में होना तो मुझे कतई पसंद नहीं था। मुझ पुलिस की नौकरी की तरफ मेरा रुझान ही नहीं था और न ही पुलिस में जाने की मेरी इच्छा थी।

पुलिस में जाने की इच्छा नहीं होने के बाद भी पुलिस में काम करने का अनुभव कैसा रहा ? 
यह सही है कि पुलिस में जाने की मेरी इच्छा नहीं थी, लेकिन जब पुलिस सेवा में शामिल हो गया और जब मैं पुलिस की नौकरी करने लगा तो मैंने पूरे मन और लगन के साथ काम किया। पुलिस की सेवा में आने पर लगा कि इसके जरिये भी समाज की सेवा की जा सकती है। मुझे पुलिस की नौकरी करते हुये समाज के लिये और समाज के बंचित, असहाय और दबे-कुचले लोगों, महिलाओं और बच्चों के लिये काम करने के बहुत अवसर मिले। हालांकि पुलिस की नौकरी शुरू करने से पूर्व पुलिस की नौकरी को नापसंद करता था, लेकिन पुलिस की नौकरी करते हुये मुझे अपने मुताबिक कार्य करने के अवसर प्राप्त हुये।

आपके परिवार में पहले कोई प्रशासनिक सेवा में रहे हैं? 
घर में सिविल सर्विस में बहुत लोग थे, पिताजी भी सिविल सर्विस में रहे। कुछ लोग शिक्षा के क्षेत्र में भी रहे लेकिन मैं कुछ अलग करना चाहता था।

आप क्या अलग करना चाहते थे? 
मैंने जमशेदपुर के पास पिछड़े इलाके में आदिवासियों के लिये एक कालेज की स्थापना की थी। उस कॉलेज की स्थापना करने के दरम्यान कुछ ऐसे हालात रहे और कुछ ऐसे राजनीतिक घटनाक्रम घटे कि कई लोगों के साथ मेरे गहरे मतभेद हो गये। कई राजनीतिज्ञों ने मुझे तरह-तरह की परेशानियों में डाल दिया। इसके बाद ही सिविल सेवा में मेरा चयन हो गया और आई. पी. एस बन गया। मैं कुछ भी ऐसा करना चाहता था जो समाज में बाकी लोगों के काम से अलग हो। पुलिस में रहते हुए मैं बाकी अधिकारियों से अलग हट कर कार्य करना चाहता था।
 
आप पुलिस अधिकारियों से अलग क्या करना चाहते थे, जो समाज के हित में हो? 
मैं सामाजिक परिवर्तन करना चाहता था। मैं चाहता था कि मैं सोशल इकोनॉमिक ट्रांसफार्मेशन का हिस्सा बनूं। भारत में जो परिवर्तन हो रहा है या हो सकते थे उन परिवर्तनों का हिस्सा बनना चाहता था। उनके साथ काम करना चाहता था। एक प्रकार से सामाजिक बदलाव का भी मैं हिस्सा बनना चाहता था।
 
आपने किस प्रकार से सामाजिक बदलाव करने का प्रयास किया? 
‘प्रयास’ नाम से ही मेरा एक संगठन है। यह संगठन 22 साल पुराना है। ‘प्रयास’ में अभी 25-30 हजार बच्चे हैं, 7-8 हजार महिलाएं हैं। ‘प्रयास’ राश्ट्रीय स्तर पर बच्चों की बहुत बड़ी संस्था है। इसके 230 केंद्र हैं, शैक्षणिक केंद्र हैं, 10 अलग-अलग होम्स चल रहे हैं। बच्चों एवं महिलाओं को आर्थिक मदद देने के लिये ‘प्रयास’ की ओर से कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। सेल्फ इम्प्लॉयमेंट और माइक्रो फाइनेंस की गतिविधियां भी चलायी जाती हैं। ‘प्रयास’ देश के नामी-गिरामी स्वैच्छिक शैक्षणिक संगठनों में से एक है। मैं अगर आज दिल्ली कमीशन ऑफ चाइल्ड राइट्स का अध्यक्ष हूं तो ‘प्रयास’ की वजह से ही हूं। ‘प्रयास’ के कामों के कारण ही दिल्ली सरकार ने मुझे दिल्ली के बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिये काम करने की जिम्मेदारी देने का फैसला किया। दिल्ली के बच्चों की तमाम जिम्मेदारी मुझ पर मानी जाती है।

क्या आप ‘प्रयास’ की सफलता को अपने जीवन की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखते हैं? 
दरअसल ‘प्रयास’ ऐसे बच्चों की संस्था है जो बहुत ही निम्न वर्ग और गरीब परिवारों से आते हैं। इसलिए ‘प्रयास’ में आने वाले बच्चों के जीवन को संवारना, उन्हें पढ़ने-लिखने के बेहतर अवसर देना ही एक बड़ी चुनौती है और उन बच्चों के जीवन में ‘प्रयास’ द्वारा किये गये कार्यों से उन बच्चों के जीवन में बदलाव आना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि तो है ही।

एक पुलिस अधिकारी रहते हुए आप क्या ऐसा महसूस करते थे कि आम जनता के साथ पुलिस जिस का व्यवहार रहता है, वैसा नहीं होना चाहिये ? 
दरअसल मैं पहले से ही बाकी पुलिसवालों की तरह नहीं सोचता था। हमेशा ही मेरी कोशिश जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनने की होती थी और उनका विष्वास प्राप्त करने की होती थी। यह सही है कि पुलिस वालों पर आम जनता आसानी से विष्वास नहीं करती है, बल्कि यूं कहें कि पुलिस वालों से या पुलिस के नाम से ही लोग डरते हैं।
आम जनता पुलिस के नाम से क्यों डरती है जबकि पुलिस को उसकी सुरक्षा के लिए ही तैनात किया जाता है?
यह सही है कि पुलिस को जनता की सुरक्षा के लिए तैनात किया जाता है लेकिन जनता की नजर में पुलिस की छवि इतनी खराब होने के पीछे सबसे बड़ा कारण है आर्थिक स्थितियां। न केवल पुलिस वालों को बल्कि दूसरे सरकारी मुलाजिमों की भी आर्थिक स्थितियां इतनी खराब होती है जिसका सारा दुष्प्रभाव उनकी नौकरी, उनके व्यवहार और उनके परिवार पर भी पड़ता है जिसके कारण उनमं गुस्सा, झूठ और बेईमानी के गुण विकसित हो जाते हैं जिसका प्रभाव समाज पर भी पड़ता है और कोई भी पुलिस वाला यह भूल जाता है कि पुलिस की नौकरी के अलावा वह भी एक आम इंसान और एक सामाजिक प्राणी है। तब वह सिर्फ अपनी ड्यूटी बजाता है वह भी डंडे के जोर पर और इसलिए आम जनता में बजाय सुरक्षा के डर की भावना पैदा हो जाती है।
 
एक पुलिस अधिकारी की हैसियत से आप क्या सोचते हैं कि पुलिस प्रशासन को अपनी कार्यप्रणाली में किसी प्रकार का सुधार करना चाहिए? 
सबसे बड़ा प्रयास तो यही किया जाना चाहिए कि पुलिस अधिकारियों को जनता के बीच विश्वास स्थापित करने और न्याय दिलाने के लिए सढ़ी ढंग से प्रशिक्षण देना चाहिए। बिना किसी भेदभाव के सभी के साथ समान व्यवहार और न्यायिक प्रक्रिया को अंजाम दिया जाना चाहिए जिसके लिए पुलिस कर्मचारियां को पूरी तरह से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। उन्हें इस प्रकार की सहुलियतें और सहायता दी जाए जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो। भ्रष्टाचार के लिए कड़ी प्रक्रिया अपनाई जाए।

आमोदकंठ का परिचय
 
दिल्ली के पूर्व पुलिस महानिदेशक और अरूणाचल प्रदेश के डीआईजी रह चुके श्री आमोद कंठ इन दिनों स्वयं सेवी संस्था ‘‘प्रयास’’ के जरिये बच्चों की बेहतरी के लिये प्रयास कर रहे हैं। वह वह दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) के अध्यक्ष भी हैं। पुलिस सेवा, अपराध अन्वेषण और बाल एवं महिला अधिकारों में विशेष योगदान के लिये अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। बिहार में जन्में आमोद कंठ की स्कूली शिक्षा मुजफफ्रपुर, भागलपुर और मोतीहारी जैसी जगहों पर हुई। एम. ए. करने के बाद उन्होंने जमशेदपुर के पास पिछड़े इलाके में एक कॉलेज की स्थापना की। सात अलग-अलग प्रवक्ताओं के साथ मिलकर उन्होंने आदिवासियों के लिए लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज की स्थापना की जो अब बिहार का एक प्रतिष्ठित कॉलेज बन गया है।
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Anonymous
February 20, 2012 at 9:15 AM

Bahut Hi Badiya or sarthak kadam hain,

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