गुमला में पली बढ़ी शकुंतला मिश्रा की मातृ भाषा नागपुरी थी. अपनी भाषा को लेकर शुरु से ही कुछ करना चाहती थीं. लेकिन ब्राह्मण परिवार में पहले लड़कियों की पढ़ाई को खास तवज्जो नहीं दी जाती थी. शकुंतला अपने परिवार की पहली लड़की थीं, जिन्हें घरवालों ने पढ़ने दिया. उन्होंने एमए तक की पढ़ाई की.
दिलचस्प यह कि परिजनों के न चाहने पर भी शकुंतला ने नागपुरी में ही पढ़ाई की. उस समय केवल एमए में ही नागपुरी विषय की पढ़ाई होती थी, जो अब नवीं कक्षा से होने लगी है. शकुंतला को अपनी भाषा के लिए कुछ करना था, इसलिए नागपुरी को आगे बढ़ाने के लिए वह पढ़ती रहीं. अपनी काबिलियत के बल पर वह नागपुरी की व्याख्याता भी बनीं. पढ़ाई खत्म करने के बाद पांच वर्षो तक बलदेव साहु महाविद्यालय लोहरदगा में में नौकरी भी की. फ़िर जुट गयीं नागपुरी भाषा को आगे बढ़ाने में.
नागपुरी का शब्दकोश बनाया
शकुंतला ने ऐसा शब्दकोश तैयार किया है, जो नागपुरी से हिंदी में है. पहले सिर्फ अंगरेजी से नागपुरी शब्दकोश था. इस 256 पेज के शब्दकोश में 10 हजार से अधिक शब्द हैं. शकुंतला ने नागपुरी व्याकरण की भी रचना की है. विद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तर पर, बीएड में उनके संकलित, संपादित, एवं लिखित पुस्तकें साहित्य निबंध, कहानी रचनाएं, लेख निबंध ओद पढ़ाये जाते हैं.
इनका उपन्यास सातों नदी पार दूसरा प्रकाशित उपन्यास है. ये उपन्यास बीएड में भी शामिल है. शकुंतला आकाशवाणी रांची की वरीय उद्घोषिका भी हैं. नागपुरी के अलावा हिंदी की भी कविताएं लिखती रहीं है. रंगमंच में श्रोताओं के बीच नाटक की अच्छी कलाकार है.
कैसे तय किया नागपुरी का सफर
पहले नागपुरी पांडुलिपियों के माध्यम से पढ़ायी जाती थी. तभी शकुंतला ने सोच लिया था कि यदि भविष्य में उनकी आर्थिक स्थित अच्छी हुई, तो इन्हें पुस्तक का प जर देंगी. जब आकाशवाणी में नौकरी लगी, तो इसे मूर्त प देने का प्रयास किया. पहली पुस्तक कांटी नागपुरी कहानी संकलन ( एमए नागपुरी में पढ़ाई जाती है ) को तैयार करने में डॉ बीपी केसरी ने सहयोग लिया.
जनजातीय भाषा विभाग के कई पूर्व अध्यक्षों की मदद से12 गद्य-पद्य संकलन की पुस्तकें तैयारी कीं, जो 9वीं से एमए तक पढ़ाई जाती हैं. इन्होंने 100 नागपुरी कवियों की कहानी-कविताओं का संकलन कर टोंगरी पझरा एवं वनफूल नामक पुस्तक तैयार की.
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