जूनागढ़, (गुजरात)। ‘अब्दुल सत्तार ईदी’ यह नाम पाकिस्तान में पूरी अदब के साथ लिया जाता है। अब्दुल सत्तार इस देश की आवाम के दिलों पर इस तरह राज करते हैं कि उनके अनेकों नाम हैं.. ‘फरिश्ता’, ‘फादर टेरेसा’ तो ‘दूसरे गांधी’। पाकिस्तान में इनकी समाजसेवी संस्था की प्रतिष्ठा इतनी ऊंची है कि अगर संस्था का वाहन किसी फायरिंग क्षेत्र में भी पहुंच जाए तो वहां गोलीबारी रुक जाती है। दंगे-फसाद थम जाते हैं।
जरा सोचिए, इतने हिसंक माहौल में भी लोग इनका नाम सुनते ही थम जाते हैं। बड़े से बड़े उपद्रव भरे माहौल में भी कोई इनकी संस्था के वाहन तक पर हमला नहीं करता। इसलिए अब आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस महान शख्सियत का जन्म भारत की भूमि गुजरात में हुआ। मानवता के लिए अब्दुल सत्तार ईदी की कटिबद्धता यह है कि उनकी महानतम समाज सेवा के लिए उन्हें अब तक 16 बार नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित किया जा चुका है।
कराची हो या पेशावर, चाहे कोई गांव हो या कोई इलाका, लगभग हर जगह लोग उन्हें सिर्फ सम्मान ही नहीं देते, बल्कि उन्हें एक फरिश्ते के रूप में पूजते हैं। पाकिस्तान की पर्दानशीन औरतें भी जब उन्हें देखती हैं, तो उनके हाथों को चूमकर उनकी लंबी उम्र की दुआएं मांगती हैं। मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं होता और यह बात अब्दुल सत्तार ने साबित की है। इसीलिए उन्हें पाकिस्तान में उन्हें ‘दूसरा गांधी’ भी कहा जाता है।
अब्दुल सत्तार का जन्म गुजरात के जूनागढ़ जिले के बांटवा गांव में हुआ। सन् 1947 में आजादी के बाद हुए भारत-पाकिस्तान बंटवारे पर अब्दुल सत्तार सपरिवार पाकिस्तान पहुंच गए। वर्ष 1951 में उन्हांेने एक छोटी सी डिस्पेंसरी खोली। इस समय भी जब उनकी कमाई लगभग न के बराबर थी, तब भी वे असहाय लोगांे की मदद किया करते थे।
एक बार कराची में फ्लू की महामारी फैल गई। इस समय लोगों की मदद के लिए सत्तार साहब ने टेंट लगाया और कई दिनों तक लोगों का मुफ्त इलाज किया। इतना ही नहीं उनकी इस सेवा-भाव को देखते हुए लोगों ने बाद में उन्हें काफी पैसा दिया। सत्तार साहब ने इन पैसों का उपयोग भी अपने सुख के लिए नहीं, बल्कि दूसरों की भलाई के लिए ही किया। इन पैसों से उन्होंने ‘ईदी फाउंडेशन’ नामक संस्था की स्थापना की। आज यह फाउंडेशन पाकिस्तान सहित दुनिया भर के 13 देशों में कार्यरत है।
आपको एक और जानकारी देते चलें कि इस संस्था का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है और वह इसलिए कि दुनिया की यही एक ऐसी संस्था है, जिसके पास एंबुलेंस का सबसे बड़ा काफिला है। संस्था के पास 1800 एंबुलेंस, तीन ऐरोप्लेन और एक हेलीकॉप्टर भी है।
पाकिस्तान में इस संस्था के 450 केंद्र कार्यरत हैं। संस्था का काम सिर्फ और सिर्फ समाजसेवा है। संस्था अनाथों के लिए अनाथालय, मुफ्त हॉस्पिटल, पुनस्र्थापन की व्यवस्था, विकलांगों की हर तरह से मदद आदि सुविधाएं उपलब्ध कराती है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाओं के समय भी संस्था द्वारा लगभग 40 हजार नर्सों और कर्मचारियों की फौज तुरंत राहत कार्य शुरू कर देती है।
इसीलिए तो सत्तार साहब पाकिस्तान में ‘फादर टेरेसा’ तो ‘दूसरे गांधी’ के रूप में विख्यात हैं। अब्दुल सत्तार की पत्नी बेगम बिलकिस इस संस्था की अध्यक्षा हैं। इसी सामाजिक सेवा भाव को देखते हुए पति-पत्नी को वर्ष 1996 में भारत की ओर से गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा अब्दुल सत्तार ईदी को लेनिन शांति पुरस्कार, बलजन पुरस्कारों भी सम्मानित किया जा चुका है।
आज पाकिस्तान में अब्दुल साहब का नाम इतना प्रख्यात है कि वे पूरे पाकिस्तान में कहीं भी पहुंच जाए, किसी को उन्हें अपना नाम बताने की जरूरत नहीं। आज जब पाकिस्तान प्राकृतिक आपदाओं से लेकर घरेलू मुसीबतों से चहुंओर घिरा हुआ है तो ऐसे में अब्दुल सत्तार साहब जैसे लोग वाकई किसी फरिश्ते से कम नहीं।
आज ईदी परिवार के पास अगर कुछ है तो सिर्फ गरीबों के लिए ही है। अपने झूलाघर स्कीम के चलते उन्हें पाकिस्तान के हजारों बच्चों की जिंदगियां बचाईं। अनाथ और लाचार बच्चियों की उन्होंने शादियां करवाई। सिर्फ पाकिस्तान में ही वे हजारों बच्चों का एकमात्र सहारा हैं और वे सभी बच्चों का वैसा ही ध्यान रखते हैं, जैसा कोई पिता अपने बच्चों का रखता है।
वास्तव में एक फरिश्ता कैसा होता है इसका उदाहरण इस बात से ही समझा जा सकता है कि अब्दुल साहब ने कभी भी ट्रस्ट के एक रुपए का भी उपयोग अपने व परिवार के लिए नहीं किया। एक बार की बात है उनके बेटे फैजल ने उनसे साइकिल की मांग की। लेकिन सत्तार साहब ने उसे साइकिल नहीं दिलाई, इसके बदले में उनका बेटे को यही जवाब था : जब मैं सारे बच्चों के लिए साइकिल खरीदूंगा, तब उनमें से एक तुम भी होगे।
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