सफेद छड़ी का परिचय करवाने का श्रेय लायंस क्लब इंटरनेशनल को

अमेरिका में सफेद छड़ी का परिचय करवाने का श्रेय लायंस क्लब इंटरनेशनल के जियोर्ज ए. बोनहम को जाता है। 1930 में लायंस क्लब के सदस्यों ने काले रंग की छड़ी लिए हुए दृष्टिहीन व्यक्तियों को सडक़ पार करते हुए देखा। काली सडक़ पर यह छड़ी ठीक ढ़ंग से दिखाई नहीं देती थी। सदस्यों ने छड़ी को सफेद रंग से रंगने का निर्णय लिया ताकि छड़ी ज्यादा दृश्यमान हो सके। 1931 में लायंस क्लब ने दृष्टिहीन लोगों के प्रयोग के लिए सफेद छड़ी को बढ़ावा देने का कार्यक्रम शुरू किया। 6 अक्तूबर, 1964 को अमेरिकी सरकार द्वारा 15 अक्तूबर को सफेद छड़ी दिवस के रूप में मनाए जाने के निर्णय के बाद से विश्व भर में इस दिवस को मनाए जाने का सिलसिला चल रहा है।  
दृष्टिबाधित या दृष्टिहीन लोगों के चलन एवं अभिविन्यास के लिए सफेद छड़ी एक क्रांतिकारी साधन है। अधिकतर दृष्टिबाधित व्यक्ति अपने वातावरण में स्वतंत्रता एवं आत्मविश्वास के साथ चलने के लिए इस साधन का ही चुनाव करते हैं। ऐसा संभवत: इसलिए है कि क्योंकि यह बुनियादी, बहु उपयोगी, सहज उपलब्ध एवं सस्ता साधन है और इसे बहुत ही कम रखरखाव की जरूरत पड़ती है। 1964 में अमेरिका में प्रति वर्ष 15 अक्तूबर को सफेद छड़ी सुरक्षा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। उसके बाद दृष्टिबाधा के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने और सफेद छड़ी के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से विश्व के अन्य देशों में भी इस दिवस को मनाया जाने लगा।

 सफेद छड़ी को डॉ. रिचार्ड हूवर ने तैयार किया था जिस कारण इसे हूवर छड़ी के नाम से जाना जाता है। इसके बाद में अन्य अनेक प्रकार की छडिय़ां तैयार हो गई हैं। सफेद संकेत छड़ी दृष्टिहीनों द्वारा अन्य लोगों को इस बात का संकते करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है कि इसका प्रयोक्ता दृष्टिबाधित है और उसे किसी सहायता की जरूरत हो सकती है। यह छड़ी चलन यंत्र या किसी शारीरिक मदद के लिए प्रयोग में नहीं लाई जाती। हालांकि सभी प्रकार की छडिय़ों का प्राथमिक उद्देश्य थोड़ा भिन्न है। लेकिन रिचार्ड हूवर ने दृष्टिबाधित लोगों को रास्ते में पड़ी वस्तुओं व अवरोधों की पहचान करने के लिए सफेद छड़ी की परिकल्पना की थी। छड़ी की लंबाई इसके प्रयोक्ता के कद पर निर्भर करती है लेकिन मोटे तौर पर इसकी लंबाई इसे प्रयोग में लाने वाले व्यक्ति की छाती के बराबर होनी चाहिए।

 सदियों से ही दृष्टिहीन व्यक्ति चलन उपकरण के तौर छडिय़ों का प्रयोग करते आ रहे हैं लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद सफेद छड़ी की परिकल्पना के बाद दृष्टिहीनों के सुविधाजनक चलन में बड़ा बदलाव आया है। सफेद छड़ी के विकास की एक लंबी प्रक्रिया है। इंग्लैंड के शहर ब्रिस्टल में 1921 में जेम्स बिग्स नाम के फोटोग्राफर दुर्घटना के कारण दृष्टिहीन हो जाते हैं। सडक़ों पर ट्रैफिक की बहुलता के कारण उन्हें बहुत अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। वे अन्य लोगों को अपनी उपस्थिति जाहिर करने के लिए अपनी छड़ी पर सफेदी लगा देते हैं। 1931 में फ्रांस में गिल्ली हरबेमाऊंट ने दृष्टिबाधित लोगों के लिए राष्ट्रीय स्तर का सफेद छड़ी आंदोलन चलाया। इसी वर्ष 7 फरवरी को उन्होंने देश के कईं मंत्रियों की उपस्थिति में दृष्टिहीन लोगों को पहली दो सफेद छडिय़ां प्रदान की। बाद में प्रथम विश्व युद्ध में दृष्टिहीन हुए पूर्व सैनिकों व सिविलियनों को करीब पांच हजार सफेद छडिय़ां भेजी गई।
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