ईंट से ईंट जुड़ती गई और बन गया अस्पताल

जालंधर. गांव में जब भी खुशी का कोई मौका आता है, लोगों को आयुवेर्दिक डिस्पेंसरी की याद आ जाती है। एक नमूना जानिए, गांव के दर्शन सिंह सौ साल की उम्र पार कर गए। उम्र के इस पड़ाव में भी सेहतमंद बने रहने पर वे वाहेगुरु का सजदा करते हैं। जब दुआ के लिए उनके हाथ उठते हैं तो वे दूसरों को सेहत बख्शने की प्रार्थना भी करते हैं।


दूसरों की सेहत माने गांववासियों की सेहत। गांववासियों की सेहत यानी मुकम्मल अस्पताल। दर्शन सिंह की इस भावना की कद्र करते हुए उनके एनआरआई पुत्र ज्ञान सिंह ने डिस्पेंसरी को एक लाख रुपए दिए। यूके में अपना स्टोर चलाने वाले ज्ञान सिंह ने यह कदम उठाया तो पूरे गांव ने जश्न मनाया। और फिर खुशियां मनाने का यह अंदाज एक रीति बन गई।

इसी रीति की वजह से ईंट से ईंट जुड़ती गई। आयुर्वेद प्रेम के कारण लंबरदार सोहन सिंह के बेटे सुलखन सिंह ने अपने पिता के नाम पर पचास हजार रुपए दिए। सुलखन यूके निवासी हैं। उनका वहां मोटर पार्ट्स का स्टोर है।

जब भी वे वतन आते हैं, डिस्पेंसरी को आर्थिक मदद देना नहीं भूलते। इतना ही नहीं, एक दिन डिस्पेंसरी में गांव की एक गरीब विधवा ट्रस्ट को बीस रुपए दे गई। साथ ही बताया, वह इतना ही दे सकती है। यह भी उसने बड़ी मुश्किल से बचाए थे। मतलब यह कि गांव में चल रहे ‘यज्ञ’ में आहुति डालने में कोई पीछे भी नहीं है, रिश्ता दिल से जो जुड़ चुका है।

सियासत की वजह से पड़ी खाई पाट दी


पंजाब के सियासी परिवेश में कट्टरता किससे छुपी है। गांव की डिस्पेंसरी ने उसे भी दूर कर दिया। बताया जाता है कि डिस्पेंसरी को अपग्रेड करने के लिए गठित ट्रस्ट के सेवादारों का झुकाव एक दल विशेष की ओर था। इस कारण दूसरे दलों से जुड़े लोग दूर रहे। डिस्पेंसरी की सूरत बदलने लगी तो मन भी बदले।

फिर दिल मिले तो उन्हीं लोगों के बनाए स्व. लक्ष्मण सिंह वेलफेयर ट्रस्ट ने डिस्पेंसरी को 70 हजार रुपए दिए। उससे पंचकर्म सेंटर के लिए शिरोधारा मशीन, वाटर कूलर और अन्य सामान खरीदा गया। पंचकर्म सेंटर में लगाए गए उपकरण ऐसे ही किसी न किसी सौगात के रूप में लोगों से मिले हैं। अब सरकारी डिस्पेंसरी की अपग्रेडेशन बिना सरकारी कांट्रैक्ट के पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का उदाहरण भी है।
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