नदियों को प्रदूषण मुक्त करने का प्रभावी प्रकल्प : पुष्पांजलि प्रवाह

एक समाजसेवी पर आधारित विशेष रिपोर्ट 2012
 धार्मिक आधार -- धराएत इति धर्मः अर्थात जो धारण किया जाए ,वही धर्म है. यह श्लोक हमारे शाश्वत सनातन धर्म के व्यापक दृष्टिकोण को प्रमाणित करता है.सनातन धर्म किसी रूढ़िवादिता या कट्टरपंथी का नाम नहीं , बल्कि यह धर्म मानव सभ्यता के उत्थान और प्राकृतिक सम्पदा का संरक्षण का एक माध्यम है, हमारे सामान्य रीति- रिवाज सबके पीछे एक तर्क है- विज्ञानं का , विचारों की प्रखरता एवं विद्वानों के निरंतर चिंतन से मान्यताओं व आस्थाओं में भी परिवर्तन हुआ. पुष्पांजलि प्रवाह की व्यवस्था आदि पूजा अर्चना के दौरान अनादि काल से चली आ रही है.

समाज के सभी लोग भगवान से किसी न किसी कारण जुड़ा रहता है . हम उनको भेंट स्वरुप माला , फूल, नारियल ,फल और अन्य सामग्री भेंट करते हैं . इन सामग्रियों में पंडित महाराज को जो जरूरत होती है , वह ले लेते हैं . जो गो माता को भेंट कर सकते हैं वह हम उन्हें खिला देते हैं , एवं बची हुई सामग्री को नदी में प्रवाह कर देते हैं .जिससे किसी को पैर न लगे एवं इन पूजा सामग्री को सम्मान मिले . इसके लिए सबसे अच्छी व्यवस्था थी की नदी में प्रवाह कर दो. भारत के नदियों से भी सनातन धर्म मन का रिश्ता रखती है . माँ हमें दूध पिला कर हमारे जीवन को सुरक्षित करती है और नदी का जल ही मानव का जीवन है , इसलिए जीवन देनेवाली है माँ. नदी को साफ सुथरा रखने का उपाय सनातन धर्म ने खोजा , नदी में ताम्बे के सिक्के डालें एवं फूल माला विसर्जित करें.फूल मालाओं से नदी के उपरी सतह पर जो तरल पदार्थ जो स्नान करने के कारण होता है ,वह साफ हो जाती है. वही फूल माला मछलियों का भोजन हो जाता था, जैसे हम अपने अस्थियों को नदी में प्रवाह करते हैं, क्योंकि उन्हें सम्मान मिले. फूल मालाओं को वैसे ही विसर्जित करते हैं , अर्थात अस्थियों को वहां विसर्जित करना चाहिए जहाँ उसे सम्मान मिले . माता- पिता के अस्थिओं को हम सम्मान देते हैं और भगवान के फूलमाला, फोटो इधर - उधर फ़ेंक देते हैं ,जिसकी एक ही सजा है -क्लेश. जिस तरह दूध में खट्टा पड़ते ही दूध फट जाता है . आप कुछ नहीं कर सकते ,उसे फटना ही है. इसी तरह पूजा सामग्री इधर उधर फेंकने से क्लेश होगा ही, आप नहीं रोक सकते.

आध्यात्मिक आधार : मंदिरों में चढ़े फूलों की दुर्दशा मन में कहीं वैसे भी खटकती थी, लोगों द्वारा पहनी गयी मालाओं को भेंट दी गए सम्मान के प्रतीक फूलों का यहाँ - वहां बिखर कर तिरस्कृत होना. कई बार मन पर प्रश्न चिन्ह बनकर उभरा, अनुसन्धान करते हुए मन में विचार आया की क्यों न फूलों को खाद बनाने के मुख्य उत्पाद के रूप में काम में लिया जाय. श्रद्धा के रूप में सृजनात्मक संरक्षण की वैचारिक कौंध ने बड़ी शीघ्रता से कार्य शुरू करने की आध्यात्मिक प्रेरणा मिली .चार- पांच बार प्रयोगों के बाद आवश्यक संशोधन कर एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जा सका . गीता के श्लोक ३/१२ में इसका उल्लेख है. इसका सार है की जब किसी व्यक्ति को कोई वस्तु दी जाती है और वह इसे लौटने की जिम्मेदारी पूरा नहीं करता तो वह चोर है. प्रकृति साफ हवा व शुद्ध पानी देती है . पेड़ , वनस्पति भोजन देते हैं. हमारा कर्तव्य है की हवा को साफ रखें , पानी प्रदूषित न होने दें. आहार को विषाक्त होने से बचाएँ. जो वायु , जल, धरती को प्रदूषित करतें हैं, वह पाप कर्म करते है. आस्था एक भाव है. इश्वर, धर्म, सत्य, करुना, मानवता सब आस्था के ही विषय हैं. हमारे त्यौहार , रीति- रिवाज , दान एवं प्रतीक अपने आप में पूर्ण सन्देश व ज्ञान लिए होते हैं , जिन्हें अच्छी तरह समझकर , गुनकर , भावपूर्वक , ध्यान पूर्वक व विधि पूर्वक करने से ही चमत्कृत करने वाले अनुभव होते हैं, अन्यथा यह मानव - जीवन के लिए बड़ा अनर्थकारी होता है. आज जब हम अपने चारों ओर देखते हैं तो लगता है की भारत ने सभी क्षेत्रों में अच्छी प्रगति की है. उसकी जरूरतें काफी हद तक पूर्ण हो रही है, परन्तु वास्तविकता यह है की इतनी तरक्की के बाबजूद मानव सुखी और संतुष्ट नहीं है. कहीं न कहीं उसके मन में असंतोष है, वह सभी स्तरों पर अनेक समस्याओं का सामना कर रहा है क्योंकि हम अपने आस्था को समय अनुसार बदल दिए हैं . सुख प्राप्त करने के लिए हमने दुखों को जन्म दिया अतः कहीं न कहीं विसंगति अवश्य है , चाहे यह हमारे सोंच में हो या मौजूद व्यवस्था में हो . प्रत्येक व्यवस्था एक निश्चित चिंतन का ही परिणाम होती है .

सामाजिक आधार : समाज में रहनेवाले प्रत्येक मानव सामाजिक हैं . सभी अपने- अपने कर्त्तव्य का पालन करते हैं . सभी को यह पांच धर्म निभाना पड़ता है (१)परिवार का ख्याल रखना (२)धर्म का पालन करना (३) समाज का ध्यान रखना (४) प्रकृति का संरक्षण करना (५) राष्ट्र की रक्षा करना . हम परिवार का तो ख्याल रखते हैं , धर्म का भी पालन करते हैं , समाज का ध्यान भी रखते हैं , वोट डालकर राष्ट्र की रक्षा भी करते हैं लेकिन प्रकृति का संरक्षण नहीं करते , जबकि मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसकी मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक आवश्यकता की भी पूर्ति करता है , कोई मानव मात्र सुविधाओं की प्राप्ति से प्रसन्न नहीं रह सकता . प्रकृति के प्रत्येक अंग पर मानव का अधिकार है , यह अधिकार मानव को किसने दिया ? यह अधिकार मानव के प्रकृति का संरक्षक बन कर प्रकृति से हासिल किया . इसके बदले मानव ने प्रकृति से प्रतिज्ञान किया की हम आपकी यथास्थिति बनाए रखेंगे, लेकिन मानव सामाजिक स्थिति - परिस्थिति में उलझकर अपनी प्रतिज्ञान भूल गया , पृथ्वी या नदी जड़ है , इस विश्वास के अनुसार वो माँ कैसे ? परन्तु हिन्दू दर्शन ने उन्हें मातृत्व की श्रद्धा से महिमामंडित किया है . पेड़-पौधों को इश्वर तुल्य माना गया है , लेकिन मानव ने जिसे संरक्षण देने का प्रतिज्ञा किया था वह उसे वध करने लगे.

सामाजिक दृष्टि से यह महापाप है , सामाजिक मानव का कर्त्तव्य है कि वह प्रकृति का संरक्षक होने के नाते उसे न खुद ख़राब करे और न किसी को ख़राब करने दे . यह नदी , हवा, पेड़, पहाड़ सब हमारा है , आपका अपना है . भारत के प्रत्येक मानव को भारत के संविधान ने भी 51A के तहत यह हक दिया है कि आपका ही नदी है, पहाड़ है, हवा है . कोई अगर इसे ख़राब करता है तो आप उसे बल पूर्वक रोकें. भारत का संविधान आपके साथ है, लेकिन हम भी जाने -अनजाने प्रकृति के अंगों का वध करने लगे .किसी नदी को मरना लाखों लोगों की जिन्दगी को खतरे में डालना और एक सभ्यता की हत्या के बराबर है, कोई भी कार्य मुश्किल या आसान नहीं होता, यह तो हमारी सोच है जो उस कार्य को मुश्किल या आसान बना डालती है . कार्य या समस्याओं के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदल कर हम उसे आसानी से पूरा कर करते हैं.

आर्थिक आधार : किसी भी समस्या के समाधान के लिए आर्थिक आधार अच्छा होना चाहिए. समस्या का समाधान हम समस्या को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर कर सकते हैं , जैसे दिल्ली की यमुना नदी . 10 बर्ष पहले दिल्ली में यमुना नदी से 200 ट्रक नदी में गिराए गए पूजा सामग्री निकाली गयी , 10 बर्ष बाद श्री श्री रविशंकर जी ने लगभग 5000 कार्यकर्ताओं के साथ 100 ट्रक पूजा सामग्री निकाली. प्रत्येक बर्ष स्कूल के बच्चो द्वारा भी यमुना को प्रदूषण मुक्त करने हेतु श्रमदान होता है. सरकारी एवं सामाजिक संस्थाएँ 10 बर्षों से कचड़ा निकाल रही है .सभी निकाल रहे हैं , वहीं दूसरी ओर लोग पूजा सामग्री पुनः डाल रहे हैं. इससे आर्थिक हानि भी हो रही है और जो समय हम नदी के अन्य कार्य में दे सकते थे , वह हम चाहकर भी नहीं दे पा रहे हैं.

"पुष्पांजलि -प्रवाह" एक ऐसा कार्यक्रम है जिसके तहत मानव(लोग) पूजा सामग्री यमुना में फेकेंगे ही नहीं . इस कार्य के द्वारा इस समस्या का समाधान हमेशा के लिए हो जाएगा. इससे समय एवं आर्थिक हानि के समस्या का भी समाधान हो जाएगा. एक अनुमान है कि 11 -13 अप्रैल 2011 तक यमुना में 5 लाख किलोग्राम पूजा सामग्री फेंकी गयी, जिसे निकालने में करीब 90 दिन लगेंगे और कई करोड़ खर्च होगा . इस प्रकल्प के माध्यम से ऐसे आर्थिक खर्चों से निजात मिलेगी .

प्रदूषण : पूजा के फूल से यमुना में प्रदूषण! दिल्ली सरकार निरंतर समाचारपत्रों और होर्डिंग्स के माध्यम से सूचित करती है कि भगवान पर चढ़े हुए फूल और मालाओं को बैग में डालकर यमुना में विसर्जित न किया जाए, क्योंकि उससे यमुना दूषित हो रही है , यमुना पुल पर दोनों किनारे लोहे की जाली से घेरा लगा दिया गया है ताकि श्रद्धालु पूजा सामग्री न डाल सकें , लेकिन जाली को बीच-बीच में लोगों ने काट दी हैं, जिससे उन्हें फूल माला फेंकने की परेसानी न हो . दिल्ली सरकार प्रति बर्ष तीन चार बार जाली को जोड़ती है , लेकिन लोग उसे काट देते हैं . दूसरी ओर हमारे बहुत से भी बहन जो फूल बड़ी भक्तिभाव से देवताओं के चरणों में चढाए जाते हैं उसे किसी पीपल वृक्ष के नीचे रख दिया जाता है , किसी खम्बे पर टांग दिया जाता है , किसी मंदिर में रख दिया जाता है . धार्मिक वस्तु , फूल माला , देवी- देवताओं की खंडित मूर्तियाँ , धार्मिक कार्ड का कैलेण्डर , अगरबत्ती के पैकेटों पर छपी भगवान की तस्वीर वाला खाली पैकेट एवं चुन्नियाँ आप दिल्ली शहर में जहाँ भी देखें , हिन्दू धर्म की पूजा सामग्री बिखरी पडी मिलेगी. इस तरह हम शहर को भी गन्दा एवं प्रदूषित कर रहे हैं . लोग कहते हैं कहाँ फेकें? यह भले ही देखने में सामान्य कार्य लगता हो परन्तु हिन्दू विश्वास के अंतर्गत इसका आध्यात्मिक एवं धार्मिक मूल्य है , तार्किकों को भले ही अटपटा लगे , परन्तु उन्हें इस बात पर सहमत होना पड़ेगा कि सिर्फ बौद्धिक होकर अथवा तर्क का सहारा लेकर इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता . यमुना नदी में जो भक्तजन पूजा सामग्री फेंकते हैं ,वह यमुना नदी की गहराई कम करते हैं. यमुना नदी की गहराई पहले 12 -15 मीटर थी , जो अब मात्र 1 -2 मीटर है. नदी की गहराई ही नहीं है , जिसके कारण बाढ़ एवं सूखा की समस्या होती है . यह हमारे कारण प्रदूषण की वर्तमान व्यवस्था का नतीजा है . दुनिया का पथ प्रदर्शन करना अतीत में भी हमारा पावन कर्त्तव्य रहा है और हर परिस्थिति में हमें वही कार्य करना है ताकि निकट भविष्य में पर्यावरण का संकट टाला जा सके. हमें इस धार्मिक कार्य के लिए सुसज्जित होना होगा.

सरकारी मानसिकता , प्रयास एवं खर्च : केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार पूजा सामग्री से 1 .5 % नदी प्रदूषित होती है . दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अनुसार लाखों प्लास्टिक बैग में पूजा सामग्री यमुना में डाली जाती है , जो नहीं होना चाहिए, पर कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन हमने और आपने देखा कि दिल्ली में 10 बर्षों से यहीं पूजा सामग्री ही निकाली जा रही है. यमुना के किनारे यह सामग्री से भरा हुआ है.
प्रयास - सभी पुलों पर जाली लगाया गया है . प्रत्येक बर्ष विद्यार्थियों द्वारा यमुना के किनारों की सफाई , गैर सरकारी संस्था द्वारा सफाई दिल्ली के मुख्यमंत्री द्वारा सफाई श्री श्री रविशंकर द्वारा सफाई को सरकार ने मदद किया .
खर्च- विद्यालयों को दस हजार एवं बच्चों को नास्ता , दस्ताने, फावड़ा वस्तुएं प्रदान किया जाता है . प्रत्येक बर्ष इस प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है जिसमे काफी खर्च होता है. इसके साथ दिल्ली सरकार द्वारा समय- समय पर सफाई कार्यक्रम होता है . यमुना में जान डालो ...............इस तरह का 10 बर्षों से सरकार प्रचार कर रही है. जितना पूजा सामग्री प्रत्येक बर्ष गिराई जाती है उसमे से 25 % ही साफ हो पाती है.
सूचना का अधिकार के द्वारा हमें पता चल सकता है कि 10 बर्षों में इन पूजन सामग्री को साफ करने के लिए सरकार द्वारा कितने अभियान चलाए गए ? इसमे कितना खर्च हुआ? इसका परिणाम क्या रहा ? इस सरकारी अभियान को किन-किन लोगों द्वारा तैयार किया गया था? आने वाले बर्षों में किन-किन अभियान पर सरकार काम करने जा रही है और उसके लिए कितना बजट निर्धारित हुआ है?

मूल समस्या : सभी लोग भगवान , गौड , अल्लाह ,गुरु गोविन्द सिंह और अपने -अपने धर्म से जुड़े हैं. किसी न किसी प्रकार अपने भगवान को खुश रखने के लिए भक्त उन्हें माला फूल एवं अन्य सामग्री से पूजा अर्चना करते हैं. उसके बाद सभी वस्तुओं को नदी एवं किसी मंदिर या पीपल के पेड़ के नीचे फ़ेंक देते हैं क्योंकि यह सामग्री पांच- छः दिन के बाद सड़ने पर बदबू देने लगता है , इसलिए लोग इसे जल्दी से कहीं-कहीं फ़ेंक देना उचित समझते हैं . शास्त्र के अनुसार भगवान पर चढ़ाई गयी पूजा सामग्री बसी घर में नहीं रखना चाहिए. मंदिरों में , गुरुद्वारा में , मजारों पर जो फूल -माला चढ़ाई जाती है वह भी यमुना में फेंकना इनकी मजबूरी है.
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि नदी को आप गन्दा नहीं कर सकते लेकिन अब तक इस आदेश पर अमल हेतु कोई व्यवस्था ही नहीं है . दिल्ली सरकार ने 2005 को हलफनामा देकर दिल्ली हाईकोर्ट को सूचित किया कि पूजा सामग्री डालने के लिए सरकार यमुना के किनारे बड़े-बड़े कुण्ड बनाएगी , लेकिन 6 बर्ष बीतने के बाद भी कोई व्यवस्था नहीं हो पाई है. लोग प्रति बर्ष 15 लाख किलोग्राम पूजा सामग्री यमुना में फ़ेंक देते हैं. दिल्ली में प्रतिदिन बीस हजार किलोग्राम फूलों कि खपत है. नवरात्रि में प्रतिदिन चालीस हजार किलोग्राम खपत होती है. नवरात्रि बर्ष में 2 बार होती है
8 +8 दिन=16x40,000k.g=6,40,000 kg
300 दिन x 20,000 k.g . =60,00000 kg
इसके आलावा देवी देवताओं कि खंडित मूर्तियाँ , धार्मिक कार्ड , कैलेण्डर, अगरवत्ती के पैकेटों पर भगवान की तस्वीर वाला खाली पैकेट , तस्वीर, चुन्नियाँ , धार्मिक फटी पुरानी पुस्तकें भी फेंके जाते हैं.
दिल्ली में 1 करोड़ 20 लाख लोग हैं लगभग-: 25 लाख लोगों के घरों में से 2 किलोग्राम प्रत्येक बर्ष यदि २ किलोग्राम भी निकालता है तो 25 लाख x 2 किलोग्राम =50 लाख किलोग्राम यह पूजन सामग्री भी यमुना में गिराई जाती है.
(6 ,40 ,000 किलोग्राम +60,00,000 किलोग्राम +50,00,000 किलोग्राम =116,40,000 किलोग्राम ) यह डाटा एक जनरल कॉमन सेन्स है. इसको निकलने में कितने करोड़ लगेंगे? यह एक बर्ष में डाली गयी पूजन सामग्री है.

समाधान : इस समस्या पर गंभीरता पूर्वक अनुसन्धान कर समस्या का समाधान खोजा गया है, जिसमें भक्तों की आस्थाओं को ध्यान में रखकर उसके अनुरूप ही व्यवस्था बनाई गयी है. दिल्ली के सरकारी रिकार्ड में लगभग 2500 मंदिर है, जबकि वास्तव में लगभग 4200 मंदिर हैं.
एक पायलट कार्यक्रम : -
(क ) 500 किलोग्राम फूल से अधिक खपत वाले मंदिरों में छोटा कलश रखना , जिसमें 150 किलोग्राम फूलमाला एवं पूजा सामग्री आ जाती है. जिसे एक दिन छोड़कर हमारे कार्यकर्ता आयेंगे और सभी सामग्री ले जायेंगे.
(ख)1000 जगह पर जहाँ लोगों का निवास स्थान है वहां पुष्पांजलि प्रवाह पात्र लगाना जिससे जो लोग घरों में पूजा करते हैं वह अपना पूजा सामग्री अपने घरों के पास लगे पात्र (बौक्स ) में डालें . यमुना पीपल का पेड़ मंदिर जाकर फेंकने की जरूरत नहीं है . एक पात्र में 150 किलोग्राम पूजा सामग्री आती है . तीन दिन छोड़कर इन पात्र (बौक्स ) को खाली करने की व्यवस्था की गयी है.
(ग) दुकानदार भी अपने दुकानों में प्रतिदिन पूजा अर्चना करते हैं. पुष्पांजलि प्रवाह के कार्यक्रम में हमारे कार्यकर्ता एक दिन छोड़कर प्रत्येक दुकान जायेंगे और पूजा सामग्री उनसे ले लेंगे.
(घ) जो भक्त यमुना के पुलों से पूजा सामग्री फेंकते हैं , हमारे कार्यकर्ता उनसे वहां वह सामग्री अपने कलश में ले लेंगे. दुबारा लोग जाली न काटे के लिए वहां पर कुछ और व्यवस्था करनी है जिससे समय आने पर उसे ठीक कर दिया जाएगा.
इसके बाद भी जो लोग यमुना नदी के किनारे अपनी पूजा सामग्री को लेकर आएँगे , हमारे कार्यकर्ता वहां भी मौजूद हैं . वे वहां सामग्री उनसे बड़े सम्मान के साथ ले लेंगे और यमुना नदी को प्रदूषित न होने देंगे. इस तरह इस समस्या का कारण और निवारण की एक सम्पूर्ण योजना है . इस योजना के द्वारा इस समस्या का समाधान हमेशा के लिए हो जाएगा एवं दिल्ली के 250 बेरोजगार लडके एवं लड़कियों को रोजगार भी मिलेगा.
हमारे प्रयास : पुष्पांजलि प्रवाह के कार्य को आठ साल तक गहराई से अनुसन्धान करने के बाद हमने उच्च प्रयोग किया . हमारा प्रयोग एक दम सफल रहा . कुछ त्रुटियाँ थी जिसे हम दूर कर चुके हैं. एक प्रयोग दिल्ली के चांदनी चौक से सदर बाजार तक दुकानदारों से पूजा सामग्री लेने का कार्य किया गया . यह प्रयोग छह महीनों तक अलग-अलग तरीके से किया गया.लोगों के घरों के पास पुष्पांजलि प्रवाह पात्र श्री हासिम बाबेजी के द्वारा ही कार्य का संचालन किया गया था , जिसमे काफी सफलता मिली , लेकिन यहाँ एक प्रयोग था , जिसमें अब कुछ सुधार किया गया है. मंदिरों में एक सर्वेक्षण किया गया जिसमें मंदिरों के व्यवस्थापकों ने पूर्ण सहयोग का वादा किया. यह सर्वेक्षण आठ महीने तक किया गया था .

यमुना के घाटों पर पर जो (नाविक) नाव चलाने वाले होते हैं. उनके सहयोग से 11 , 12 , 13 , 14 .4 .2011 में जो लोग पूजा सामग्री लेकर आए , उसमें से प्लास्टिक बैग निकालकर बाकी सामग्री प्रवाह करने दिया गया. इसमें नाविकों का पूर्ण सहयोग मिला . इस अभियान के दौरान इकठ्ठा की गयी प्लास्टिक थैली लगभग 200 किलोग्राम अधिक था. 2005 से हमने इस कार्य के लिए दिल्ली के सभी सरकारी संस्थानों इस समस्या एवं समाधान की जानकारी दी एवं सहयोग की प्रार्थना की लेकिन 2011 तक सिर्फ पत्र व्यवहार के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं अपनाया गया. इस दौरान दिल्ली के 72 विधायक , सांसद, राज्यपाल, मेयर ,मुख्यमंत्री, दिल्ली राज्य प्रदूषण नियंत्रण समिति ,केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण समिति 2005 से अब तक जो भी केंद्रीय पर्यावरण मंत्री बने, उनको भी इस योजना की जानकारी दी गयी एवं सहयोग की अभिलाषा था, लेकिन उन्होंने कोई पत्र व्यवहार करना भी उचित न समझा.

2008 में मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप पर मुख्यमंत्री के पर्यावरण सचिव श्री जादू ने लगभग चालीस हजार रूपए सहयोग दिया ,जिससे हम अपनी ख़राब गाडी मरम्मत करवा सके तथा एक साईकिल ठेला ले सके.

दिल्ली के फूलों के मंडियों का व्यवस्थित सर्वेक्षण किया किया गया और उन्होंने सहयोग का वादा किया. सभी धर्म के संत , महंत को इस कार्य के बारे में जानकारी एवं समर्थन तथा 165 सांसदों को जानकारी देना , राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्यमंत्रियों को जानकारी दिया गया एवं समर्थन हेतु प्रार्थना किया गया !

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Hon;ble Madam / Sir  ,



HAPPY NEW YEAR 2012

In past 100 years,

Delhi has developed a lot

but the river Yamuna has constantly decayed...



It is time to stop destruction of Yamuna!



In the coming new year,

let us make a fresh beginning

& bring back life to our beloved river Yamuna.



The pollution in Yamuna and other rivers of the country is a grave problem known to all of us. One of the main sources of this pollution is the dumping of flowers, plastic bags, agarbatti packets and other worship materials by the people. Any amount of cleaning of river Yamuna will not work until the dumping of this material into the river is not stopped.

Our organization, Youth Fraternity Foundation, have been working with a solution to this problem with a project named "Pushpanjali Prawah".

The concept behind this project is to collect these sacred wastes *from their point of creation*: temples, shops, homes etc. respectfully and dispose/recycle this material in an appropriate manner, without causing any pollution to the river or causing air pollution caused by burning of this waste. We have run this program successfully at small scale in few area in Delhi and Mumbai for some time.

With availability of funds, this program can be easily expanded to all areas of Delhi as a sustainable sacred waste management system.  We have discussed this idea with several temples as well as leaders of various religious organizations, and all of them have extended their consent and support for this system.

If you are seeking a solution to this problem, we would be happy to assist you fully in setting up this system.     SAVE YAMUNA @ SAVE DELHI

With Warm Regards


Gopi Dutt Aakash
President, YFF INDIA





















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