मनीष तिवारी. राजनांदगांव
पांच साल पहले एक टे्रन दुर्घटना में राजनांदगांव के युवा ने अपना आधा शरीर गंवा दिया। फिर हौसले के दम पर संतुलन पाया। अब ट्यूशन के जरिए छात्रों को इंजीनियरिंग कॉलेज में पहुंचाकर अपने ख्वाब पूरे कर रहे हैं। ये कहानी है 30 वर्षीय अमित सिंह, जो मिसाल बन गए हैं।
अमित ने 1998 में 12वीं में टॉप कर गोल्ड मैडल पाया था। वे इंजीनियरिंग में रुचि रखते थे। उनका सपना पीएससी पासकर डीएसपी बनना था। 2005 में पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण की।
११ जनवरी २००६ को दुर्ग में हुए एक ट्रेन हादसे में उनका कमर के नीचे का हिस्सा कट गया। वे मुख्य परीक्षा से वंचित रह गए। उसके बाद बीते पांच साल अमित के लिए बेहद कष्ट, अवसाद और चुनौतीभरे रहे। तीन माह तक भिलाई के अस्पताल में इलाज चला। घर लौटे तो शरीर बिस्तर पर करवट बदलने के अलावा किसी लायक नहीं रहा।
इकलौते बेटे अमित को मां प्रमिला सिंह ने संबल और हौसला दिया। पिता चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह टेक्सटाइल मिल में थे। रिटायर हैं। अमित ने घर पर ही ट्यूशन देना शुरू किया। साथ ही पीएससी की तैयारी भी। उनके पढ़ाए हुए छात्रों में से अब तक ३०० पीईटी और १५ एआईईईई में चुने गए। वहीं १२वीं में ५० से अधिक बच्चों ने टॉप किया है।
११ जनवरी २००६ को दुर्ग में हुए एक ट्रेन हादसे में उनका कमर के नीचे का हिस्सा कट गया। वे मुख्य परीक्षा से वंचित रह गए। उसके बाद बीते पांच साल अमित के लिए बेहद कष्ट, अवसाद और चुनौतीभरे रहे। तीन माह तक भिलाई के अस्पताल में इलाज चला। घर लौटे तो शरीर बिस्तर पर करवट बदलने के अलावा किसी लायक नहीं रहा।
इकलौते बेटे अमित को मां प्रमिला सिंह ने संबल और हौसला दिया। पिता चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह टेक्सटाइल मिल में थे। रिटायर हैं। अमित ने घर पर ही ट्यूशन देना शुरू किया। साथ ही पीएससी की तैयारी भी। उनके पढ़ाए हुए छात्रों में से अब तक ३०० पीईटी और १५ एआईईईई में चुने गए। वहीं १२वीं में ५० से अधिक बच्चों ने टॉप किया है।
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nice
Very good
Ramakant Gupta
mdganja011@gmail.com
very nice sir
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