एक फाइव स्टार अस्पताल जहां फीस नहीं लगती

सोनिया तोमर. बेंगलुरु 
जसपाल की हृदय गति सामान्य से आधी रह गई थी। दूसरे अस्पतालों ने ऑपरेशन का खर्च पांच लाख बताया,तो हमने उम्मीद छोड़ दी। भगवान की शुक्रगुजार हूं कि ऐसी भी कोई जगह इस दुनिया में है। यह बताते हुए फिरोजपुर से आईं जसपाल की मां परमजीत कहती हैं, बेटे के दिल का ऑपरेशन हो चुका है। अब वह ठीक है। सुविधाएं ऐसी हैं कि एहसास नहीं होता है कि मुफ्त में इलाज करा रहे हैं। सत्यसाईं बाबा के डिवाइन हेल्थ मिशन से जुड़े इस अस्पताल के डॉक्टर और वालेंटियर भी अनूठे हैं।
न्यूयार्क के डॉ. माइकल रकॉफ साल में चार महीने यहीं रहते हैं। अपने खर्च पर आते हैं। मुफ्त सेवाएं देते हैं। वे इसे बाबा के विचारों का प्रभाव मानते हैं। कहते हैं यहां आकर मैं डॉक्टर के रूप में अपना असली कर्तव्य निभाता हूं।

एस. लोगांथन, इसरो में इंजीनियर थे। रिटायर होने के बाद अस्पताल में वालेंटियर हो गए। वे कभी चौकीदार की भूमिका में होते हैं तो कभी रिसेप्शनिस्ट की। लोगांथन कहते हैं, यहां आकर सुकून मिलता है। ऐसे वे अकेले नहीं हैं। सैकड़ों की तादाद में अफसर, बैंकर, गृहणी, साइंटिस्ट भी यहां सेवादार की भूमिका निभाते हैं। नीला स्कार्फ बांधे इन सेवादारों की जुबां पर होता है साईं राम।

सत्यसाईं अस्पताल परिसर में प्रवेश करते ही सामने दिखाई देता है विशाल शिखर। जैसे-जैसे भीतर प्रवेश करो, धीमी आवाज में भजन सुनाई देने लगेंगे। ये अस्पताल कम, मंदिर ज्यादा लगता है। दिन की शुरुआत भी प्रार्थना से ही होती है। इस अस्पताल को खास बनाती है जाने-माने ८० डॉक्टरों की टीम। इनमें से कई के पास है अमेरिका, यूरोप सहित दुनिया के कई देशों का अनुभव।

कार्डियेक विभाग के मुखिया हैं डॉ. वॉलेटी चौधरी। कई साल न्यूयॉर्क रहे, अब 18 साल से यहीं हैं। वेतन नहीं लेते। डॉ. चौधरी कहते हैं, यहां पूरब की देखभाल और पश्चिम की तकनीक का तालमेल है। जिससे संतुलन बनता है। मरीज की तकलीफ को समझने के लिए यहां अलग काउंसिलिंग विभाग है। इसमें विशेषज्ञ डॉक्टर और नर्स की टीम है।

मरीज परेशान न हो, इसलिए उसकी मदद करता है यहां का सेवादल। इस टीम के सदस्य मरीज को स्क्रीनिंग ब्लॉक तक ले जाते हैं। चेकअप के बाद मरीज को रजिस्ट्रेशन कार्ड दे दिया जाता है। जिस पर लिखा नंबर ही अस्पताल में उसकी पहचान होता है। फिर कोई लिखा-पढ़ी नहीं होती। यानी पर्चे और फाइलों का यहां कोई काम नहीं। सबकुछ कंप्यूटराइज्ड है। हर जांच रिपोर्ट, प्रिस्क्रिप्शन सब ऑनलाइन है। डॉक्टर इन्हें कहीं से भी चैक कर सकते हैं। मरीज जब तक अस्पताल में है, उसे दी जाने वाली सलाह, दवाईयां और भोजन का कोई पैसा नहीं लिया जाता। अस्पताल के पीआरओ प्रो. अनंत रामन तो कहते हैं कि अस्पताल में मरीजों को पर्स की जरूरत ही नहीं पड़ती। यहां आने वाले मरीजों में 60 फीसदी तो ऐसे हैं, जो महीनेभर में डेढ़ हजार रुपए से ज्यादा नहीं कमा पाते।

करीब 50 हजार मरीज हर साल परामर्श के लिए यहां की कार्डियेक ओपीडी में आते हैं। पिछले दस सालों में इस अस्पताल में २८ हजार लोगों की हार्ट और न्यूरो सर्जरी मुफ्त हुई है। सर्जरी के बाद भी मरीजों का ख्याल रखा जाता है। आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और केरल में तो अस्पताल की एक टीम सर्जरी के बाद मरीजों के घर भी जाती है। यह देखने कि वे अपना ख्याल ठीक से रख रहे हैं या नहीं। इसे नाम दिया गया है साईं फॉलोअप प्रोग्राम। पश्चिम बंगाल और ओडिशा के मरीजों के लिए टेली मेडिसिन तकनीक का इस्तेमाल भी किया जाता है। इन राज्यों में दो नोडल सेंटर बनाए गए हैं जहां जाकर मरीज वीडियो कांफ्रेंसिंग से सीधे हॉस्पिटल के डॉक्टरों से सलाह लेते हैं। अब तक इससे करीब 6 हजार कंसल्टेशन किए जा चुके हैं। जिसके कारण करीब 75 फीसदी लोगों को हॉस्पिटल तक नहीं आना पड़ा।

अस्पताल की पूरी कोशिश यही है कि लोगों को बीमारी बोझ न लगे। ये अस्पताल जुटा है, लोगों को निरोगी बनाने के मिशन में। दिवंगत सत्यसाईं बाबा की मां ने उनसे यही तो कहा था। वे चाहती थीं कि सबको स्वास्थ्य, शिक्षा और पेयजल की सुविधा मिले। उन्हीं से प्रेरणा लेकर सबसे पहले खुला पुट्टपर्थी का अस्पताल। उसके दस साल बाद 2001 में बना बेंगलुरु का यह सुपर स्पेशलिटी अस्पताल। सत्यसाईं बाबा अब नहीं हैं, लेकिन पुट्टपर्थी और बेंगलुरु के अस्पतालों में यह काम निरंतर जारी है।

लंबी वेटिंग, लेकिन इमरजेंसी समझते हैं:
'कार्डियेक सर्जरी के लिए हमारे यहां तीन और न्यूरो सर्जरी के लिए एक महीने की वेटिंग होती है। आखिर हमारे पास सीमित संसाधन है। मरीजों की संख्या के मान से देखें तो इसके लिएऐसे करीब 400 या 500 अस्पताल भी कम पड़ेंगे। फिर भी यदि इमरजेंसी केस होता है तो हम तुरंत एडमिट कर लेते हैं।'

-डॉ. वॉलेटी चौधरी, 
चेअरमैन कार्डियेक साइंस विभाग



'सिर्फ इलाज नहीं, ईश्वर का आशीर्वाद भी मिलेगा'
ऐसे कई अस्पताल हैं जहां महंगे उपकरण और अनुभवी डॉक्टर हैं। भव्य बिल्डिंग हैं। लेकिन मरीजों के उपचार से ज्यादा वहां ध्यान मुनाफे पर है। हमारे अस्पताल में लोगों को आधुनिक मेडिकल सुविधाएं प्यार भरे वातावरण में मिलेंगी लेकिन उन्हें उसका कोई मूल्य नहीं चुकाना होगा। यहां सिर्फ इलाज ही नहीं, लोगों को ईश्वर का आशीर्वाद भी मिलेगा। 
-सत्यसाईं बाबा, 
9 जनवरी 2001 को अस्पताल के शुभारंभ पर


सत्यसाईं अस्पताल: इन्फो


-333 बेड, 8 ऑपरेटिंग रूम,6 आईसीयू, दो कार्डियेक केथलैब और 24 घंटे इमरजेंसी युनिट है। -ब्लड बैंक, रेडियो डॉयग्नोस्टिक, लेबोरेटरी और टेली मेडिसिन की सुविधांए भी हैं।
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Anonymous
March 9, 2012 at 7:40 AM

Good
Ramakant Gupta
mdganja011@gmail.com

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